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manisha sinha

Others

4.9  

manisha sinha

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गुलामी

गुलामी

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खुला ये पिंजड़ा क्यूँ ,

शायद उड़ जाने के लिए!


आज़ाद हुए हम क्यूँ ,

शायद बिछड़ जाने के लिए!


लहू बही थी वीरों की

क्या यूँ भूलने के लिए!


बिखर रहा ये देश क्यूँ

जातिवाद के नाम पर


गुलामी ही सही था क्या

भाईचारे के लिए!


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