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Dr. Madhukar Rao Larokar

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गुजरे पल

गुजरे पल

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स्कूल के दिन भी, क्या दिन थे

करते थे दोस्तों के साथ,

पढ़ाई और मस्ती भी।

एक बेंच में साथ, बैठते थे

खेलते कूदते थे साथ, और मस्ती भी ।।


कक्षा बदलती रही, बेंच बदलते रहे

ना बदला तो, दोस्ती और उसका मिज़ाज।

दो शरीर एक जान थे हम

मिसाल तो बने, ना बदला हमने अपना रिवाज़।।


हममें प्रतिस्पर्धा थी, पूरी की पूरी

हर क्षेत्र में, पढ़ाई के साथ।

ना कोई हारना चाहता था जीतना

एक दूजे का ख्याल रखा, हर पल साथ साथ।।


स्कूल था हमारा, लड़कों वाला

झिझकना, शर्माना ना सीख पाये।

परिश्रम और जुनून, सीखा भरपूर

शिक्षकों के कारण, कुछ अच्छा बन पाये।।


स्कूल के दोस्त और गुजारे पल

बेपनाह मुझे याद आते हैं।

जमाना तो गुजर गया, पर दिखता है

जब स्कूल, मृत यादें पुनः जिंदा होती है। ।



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