गंगा माँ
गंगा माँ
माँ की करुणा, माँ की ममता
जग में एक ही ऐसा नाता,
जो नि :स्वार्थ निभाया जाता,
ऐसी मेरी गंगा माता।
जीवन देती, सरगम देती,
रंगों से जीवन भर देती,
देती हर खुशहाली हमको,
बदले हम अनाचार करते,
करते इसके जल को गन्दा,
फिर भी इसने अपना आँचल,
कभी ना समेटा।
कभी ना आह निकली
इसके मुख से,
चेहरे पर हरदम
मुस्कान वही है,
पर हम भी अगर
सच्चे सुत हैं इसके,
फिर क्यूँ इसके
मर्म को जान ना पाए।
दर्द है जो सीने में छिपाए,
क्यूँ ना उसे पहचान पाए,
आओ अब तो कदम उठायें,
सच्चे सुत का फर्ज निभाएं।
कुछ तो माँ का कर्ज चुकाएं,
गंगा माँ के जल को
स्वच्छ और निर्मल बनाये,
माँ के जल को स्वच्छ
और निर्मल बनायें।