STORYMIRROR

मिथलेश सिंह मिलिंद

Others

3  

मिथलेश सिंह मिलिंद

Others

ग़ज़ल

ग़ज़ल

1 min
244


नज़र की तल्ख़ियाँ देखी पिघलना आ गया मुझको। 

हवा पुरहौल थी बेशक बदलना आ गया मुझको।


भरे हैं ख़ारज़ारों से यहाँ के हर गली कूचे ,

मुसाफ़िर था बहरना पाँव चलना आ गया मुझको।


ख़लाओं की महव से यूं निकल पाना बड़ा मुश्किल,

यकीं मानो हलावट से निकलना आ गया मुझको।


जुबां ख़ामोशियों की क़ैद में कब तक रहे आख़िर ,

दिलों में जब उठी गिरया छलकना आ गया मुझको।


तज़ुर्बा मिल गया मुझको क़फ़स इस ज़ीस्त से इतना ,

दहकती आग के ऊपर टहलना आ गया मुझको ।


निगाहें कब तलक इक आक़बत की राह को देखे ,

गज़ीदा था मगर "मिथलेश" पलना आ गया मुझको।


शब्द-अर्थ :-

तल्ख़ियाँ-कड़वाहटें, पुरहौल-डरावनी, ख़ारज़ारों-काँटों से भरी,

कूचें-रास्ता, बहरना-नंगे, ख़लाओं-अँधेरों,महव-डूबा,

हलावट-मिठास, गिरया-विलाप, क़फ़स-जेल, ज़ीस्त-जिंदगी,

आक़बत-भविष्य, गज़ीदा-काट खाया हुआ



Rate this content
Log in