ग़ज़ल
ग़ज़ल
नज़र की तल्ख़ियाँ देखी पिघलना आ गया मुझको।
हवा पुरहौल थी बेशक बदलना आ गया मुझको।
भरे हैं ख़ारज़ारों से यहाँ के हर गली कूचे ,
मुसाफ़िर था बहरना पाँव चलना आ गया मुझको।
ख़लाओं की महव से यूं निकल पाना बड़ा मुश्किल,
यकीं मानो हलावट से निकलना आ गया मुझको।
जुबां ख़ामोशियों की क़ैद में कब तक रहे आख़िर ,
दिलों में जब उठी गिरया छलकना आ गया मुझको।
तज़ुर्बा मिल गया मुझको क़फ़स इस ज़ीस्त से इतना ,
दहकती आग के ऊपर टहलना आ गया मुझको ।
निगाहें कब तलक इक आक़बत की राह को देखे ,
गज़ीदा था मगर "मिथलेश" पलना आ गया मुझको।
शब्द-अर्थ :-
तल्ख़ियाँ-कड़वाहटें, पुरहौल-डरावनी, ख़ारज़ारों-काँटों से भरी,
कूचें-रास्ता, बहरना-नंगे, ख़लाओं-अँधेरों,महव-डूबा,
हलावट-मिठास, गिरया-विलाप, क़फ़स-जेल, ज़ीस्त-जिंदगी,
आक़बत-भविष्य, गज़ीदा-काट खाया हुआ
