गीत कोकिला गाती रहना
गीत कोकिला गाती रहना
बने रहें ये दिन बसंत के
गीत कोकिला गाती रहना।
मंथर होती गति जीवन की
नई उमंगों से भर जाती।
कुंद जड़ें भी होती स्पंदित
वसुधा मंद-मंद मुसकाती।
देखो जोग न ले अमराई
उससे प्रीत जताती रहना।
बोल तुम्हारे सखी घोलते
जग में अमृत-रस की धारा।
प्रेम-नगर बन जाती जगती
समय ठहर जाता बंजारा।
झाँक सके ना ज्यों अँधियारे
तुम प्रकाश बन आती रहना।
जब फागुन के रंग उतरकर
होली जन-जन संग मनाएँ।
मिलकर सारे सुमन प्राणियों
के मन स्नेहिल भाव जगाएँ।
तब तुम अपनी कूक-कूक से
जय उद्घोष गुँजाती रहना।