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Alpa Mehta

Others

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Alpa Mehta

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घुँघरू..

घुँघरू..

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घुँघरू..पैरों में उनके थिरकते रहे,

रातभर शोर मचाते रहे

बजती रही झनकार

रातभर.. पुकारते रहे।

पैरों की पाजेब थी, कि

अंतरमन की पुकार

सुनाई दे रही थी।

जब तक समझ पाते

वो.. टुकड़ा टुकड़ा बिखर रही थी

मेरे जहन को चीरती हुई वो चीख रही थी,

या घायल हृदय की आह थी।

जब तक समझ पाते,

वो मेरे दिल के आरपार हो रही थी।

न जाने क्यूं ,बेज़ुबान घुँघरू की बोली

हमें कुछ जता रही थी।

जब तक समझ पाते,

वो घुँघरू की डोर

आहिस्ता आहिस्ता टूट के,

घुँघरू बिखेर रही थी।


 



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