STORYMIRROR

Dheerja Sharma

Others

3  

Dheerja Sharma

Others

घर

घर

1 min
323

ये मकान... जिस के बाहर

प्लेट पर मैंने अपना नाम सजाया है

जिसे बनाने के लिए

मैने भारी भरकम कर्ज़ उठाया है

चमचमाती टाइलों लगे फर्श

शीशों वाली बड़ी बड़ी खिड़कियां

कीमती झाड़फानूस... राजसी ड्राइंगरूम,

सबके, अलग अलग... बड़े बड़े बेडरूम

रहने के सबके... अपने अपने ढंग

दीवारों पर अपनी पसंद के रंग।

फिर भी जाने क्यूँ....

यह घर अपना नहीं लगता

देखा था जो बार बार

वह सपना नहीं लगता।


मॉडर्न रसोई, घूमने वाला टेबल

पर खाने के वो मज़े नहीं आते

न जाने क्यों इस नये घर में

वो पुराने लोग नहीं आते।

इस घर के किवाड़

एक दूसरे के गले नहीं लग पाते

पुराने लोग शायद इसी लिए

इन्हें नहीं खटखटाते।

घर तो मुझे वो ही लगता है

अपना सा...दिल के करीब

जहाँ सब सामान होता था

ठुंसा ठुंसा...... बेतरतीब।


जहाँ दीवारों से सफेदी झड़ती थी

पर अम्मा बाबू से न लड़ती थी।

दादी की एक आवाज पर

छह जन दौड़े आते थे

सोचता हूँ वो आठ जन

कैसे तीन कमरों में समाते थे।

निवार के पलंग पर घुप्प नींद आती थी

ओबरी की सीलन न नथुनों में समाती थी।

इस घर में न सीलन है न शोर है

बस खूबसूरत शोपीस चारों ओर हैं।

फिर भी... भीतर

कुछ छूटा-छूटा सा लगता है

अपनों के बिना ये घर...

टूटा-फूटा सा लगता है...


Rate this content
Log in