घोर कलियुग आता है
घोर कलियुग आता है
आज न रावण सीता हरण को,
छल - प्रपंच कोई अपनाता है।
आज न दुर्योधन भरी सभा में,
दुशासन से द्रौपदी का चीर हरवाता है।
आज न सीता को है कोई लक्ष्मण रेखा ,
न पांडवों की होती है द्युत में कोई हार।
आज का रावण है विद्रूप और हत्यारा,
मासूम सीताओं का करता है बलात्कार।
छोटे - बड़े की रही कद्र कहां अब?
नन्ही सी जानों से करते हैं छेड़छाड़।
रावण - दुर्योधन भी होते जिंदा आज,
वे भी देते शायद इन लोगों को लताड़।
घटनाएं घटी है जो रामायण - महाभारत में,
उनसे भी बड़ी है आज की हर एक वारदात।
फिर भी न होता रामायण - महाभारत क्यों ?
क्यों सरकारें कहती हैं काबू में सब हालात?
निर्दोष बेटी की निर्मम हत्या पर,
निर्दोष असहाय बाप पछताता है।
भागो भाई भागो हरि शरण में,
अब तो घोर कलियुग आता है।
राजा भूले राजधर्म सब के सब,
प्रजा अपना वोट बिकवाती है।
कर्म फल फिर भुगतते - भुगतते ,
जनता निगोडी बेबस पछताती है।
सुप्त जनमानस और लालची प्रवृत्ति,
जनता को ये दुर्दिन कष्ट दिखाते हैं।
धनवान बटोरते हैं सरमाया - वैभव,
सर्वहारा - गरीब ही पछताते हैं।
