आज न रावण सीता हरण को, छल - प्रपंच कोई अपनाता है। आज न रावण सीता हरण को, छल - प्रपंच कोई अपनाता है।
इस बसंत की हर सुबह भरे नया उल्लास, बालू से तपते दिलों में फैले बासंती हास। इस बसंत की हर सुबह भरे नया उल्लास, बालू से तपते दिलों में फैले बासंती हास।