ग़ज़ल
ग़ज़ल
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दिल जिगर को हथेली पे लाना पड़ा
ज़िन्दगी को यूँ ही आजमाना पड़ा
पीने की उसकी ज़िद में कसम से हमें
शाम होते ही पीना पिलाना पड़ा
इंतिख़ाब ए मुहब्बत से गुज़रें हैं यूँ
देख कर रुख़ हर इक मुस्कुराना पड़ा
छोटी सी बात पर सबकी नाराज़गी
दूर हो इसलिए ही मनाना पड़ा
झूठ का इस क़दर जाल फैला यहाँ
ख़ून की बूंद से सच दिखाना पड़ा
आज़माइश हुई हर कदम की कमल
लड़खड़ाते ही दुनिया का ताना पड़ा।