गाँव
गाँव
गुनगुनी सी धूप में है, गुनगुनाता गाँव अपना
नेह आँगन में समेटे खिलखिलाता गाँव अपना
रश्मियाँ जब झाँकती हैं पत्तियों की ओट से तब
घंटियों की गूँज से सबको जगाता गाँव अपना
लाज का घूँघट हटाकर चांदनी जब देखती है
हाथ में दीपक लिये उसको बुलाता गाँव अपना
साथ सब रहते हमेशा दौर हो कोई यहाँ पर
बाँट गम खुशियाँ सभी की मुस्कुराता गाँव अपना
गोपियों का नीर लेना रोज यमुना के किनारे
और कान्हा का सताना सब सुनाता गाँव अपना
रोज पीपल खोजता है दूर तक उन बालकों को
शाम को जो खेलते जिनको भगाता गाँव अपना
आम महुआ आंवला इमली पपीते से लदे वट
रोज उँगली के इशारों से बुलाता गाँव अपना ।
रात रानी, मोगरे के पुष्प ये सूरजमुखी के
रोज इनकी खुशबुओं से महमहाता गाँव अपना