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दिनेश कुमार कीर

Children Stories Tragedy Inspirational

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दिनेश कुमार कीर

Children Stories Tragedy Inspirational

गाँव का जीवन

गाँव का जीवन

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हाँ, मैंने गांव को इतने करीब से जिया है, 

खेतों में पीले सरसों के फूलों को सौंधी खुशबु के साथ खिलते देखा, 

सर्दी में कोहरे की सफेद चादर की धुंध से लोगों की छिपते हुए देखा,

हाँ, मैंने गांव को इतने करीब से जिया है।


हाँ, मैंने गांव को इतने करीब से जिया है।

खेतों से आती हुयी सीधी ताजी - ताजी कच्ची सब्जी की महक,

खलिहानों में गन्नों से निकलता ताजगी भरा रस और ताजा गुड़ का स्वाद चखा, 

हाँ, मैंने गांव को इतने करीब से जिया है।


हाँ, मैंने गांव को इतने करीब से जिया है।

लकड़ी व मिट्टी से बने कच्चे मकानों और मन के सच्चे लोगों को

आंगन को मिट्टी और गोबर से लीप कर त्योहारों की मिठाइयाँ बनाते हुए देखा, 

बिना मिलावट का मवेशियों से निकला शुद्ध दूध और दही का असली स्वाद चखा, 

हाँ, मैंने गांव को इतने करीब से जिया है।


हाँ, मैंने गांव को इतने करीब से जिया है।

खेत - खलिहानों को जाते लोगों के चेहरों पर एक अजीब सी मुस्कान की झलक देखी है, 

शहरीकरण के बिना, चहल - पहल और ऐशो - आराम से कोसों दूर सादगी से भरी हुए एक जिन्दगी को जिया है, 

हाँ, मैंने गांव को इतने करीब से जिया है।


हाँ, मैंने गांव को इतने करीब से जिया है।

डाई नदी के पानी का कल - कल करना और बागों में पंछियों का चहचहाना सुना है, 

प्रकृति की प्राकृतिक सुंदरता में सादगी भरा जीवन जिया है, 

हाँ, मैंने गांव को इतने करीब से जिया है।


हाँ, मैंने गांव को इतने करीब से जिया है।

खेतों में काम कर रही माता - बहनों और ताऊ - काका के मुख पर स्वाभिमान देखा है, 

ना लाखों, ना करोड़ों की दौलत की चाहत से दूर मेहनत कर सुकून से जीते हुए देखा है, 

हाँ, मैंने गांव को इतने करीब से जिया है।



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