फ़िर मौत आ जानी हैं
फ़िर मौत आ जानी हैं

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फिर इक शाम ढलने को है,
फिर इक रात बितानी है,
फिर इक सुबह से उम्मीदें है,
शायद वो भी टूट जानी है,
उन टूटी फूटी उम्मीदों से,
फिर लिखनी नयी कहानी है,
हर रोज़ का ये ही किस्सा है,
फिर मौत हमे आ जानी है....