जो उड़ाकर खुले आसमां
जो उड़ाकर खुले आसमां
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जो उड़ाकर खुले आसमां के मानिंद ले जाया करती है,
वही फिर मुझे ज़मी पर पटक के जाया जाती हैं,
कभी तो ज़ोर से चीखने पर भी जो आया नहीं करती,
वही फिर ख़ामोशी से मुझको यूँ सहलाया करती है,
हर एक कदम-कदम पे मुझको क्यों सम्भालने के बजाये,
वही फिर मोहब्बत की बांहों में मुझको बहकाया करती है,
महकती ही रहती है जो ज़र्रे ज़र्रे में हवा बनके चहुँ ओर,
वही फिर आहिस्ता आहिस्ता "देव" के दिल को सुलगाया करती है।।