बेजान शरीर को जिसकी वीराने आंगन मेें अपने मैंने खुद ही दफनाया था। बेजान शरीर को जिसकी वीराने आंगन मेें अपने मैंने खुद ही दफनाया था।
है आज भी इतज़ार हमें तू आएगा मिलनें इसी फरियाद से मैं कई रतियां हूँ जगी। है आज भी इतज़ार हमें तू आएगा मिलनें इसी फरियाद से मैं कई रतियां हूँ जगी।
अब बस रह गया एक एहसास काश कुछ और दिनो का होता साथ। अब बस रह गया एक एहसास काश कुछ और दिनो का होता साथ।
रास्ते कठिन जिंदगी बोझिल सी लगती है ! रास्ते कठिन जिंदगी बोझिल सी लगती है !