एक औरत की
एक औरत की
एक बेटी बन कर ली जिंदगी
सोचा ना था कब उस घर की जान बन जाऊंगी
पापा की परी मां की लाडली बन जाऊंगी
भैया के संग खेली मामा मामी की प्यारी नाना-नानी दादा-दादी लाडली बन जाऊंगी
सफर ऐसे ही बीता सब रिश्ते छोड़ एक पत्नी धर्म निभाऊंगी
नए जीवन की शुरुआत कर नए घर की और अपना नया कदम बड़ाऊंगी
नई उमंग थी नहीं खुशी थी
नए घर को निभाने की मन में कुछ चाहते भरी थी
पर यह ना सोचा था
उस घर की जिम्मेदारी निभाते निभाते मैं खुद की जिम्मेवारी भूल जाऊंगी
कभी सास ससुर कभी नंद देवर की ख्वाहिशों को
पूरा करते-करते अपनी ख्वाहिशों की बलि चढ़ा आऊंगी
समय बीतता गया पत्नी से मां बन गई
फिर नया अध्याय शुरू हुआ
सब रिश्तों को छोड़ मां बन गई
मां की भूमिका निभाते निभाते और उलझ जाऊंगी
फिर क्या था कभी पत्नी कभी मां कभी बहू यही जिंदगी थम जाएगी
सोचा ना था कभी अपने लिए ही जीना भूल जाऊंगी
एक वह दिन था जब एक छोटी सी चीज की जिद पकड़ना
आज दूसरों की खुशी के लिए सब कुछ भूल जाना बच्चे ना जाने कब बड़े हो गए
आज वह दिन आया जब हम सास बन गए
फिर क्या था बच्चों को समझ ना आया
हमको एक कोने में जगह देकर हमारा दर्जा बताया।