ए जिंदगी
ए जिंदगी
बचपन के दिन भी क्या दिन थे
ना कोई रोक टोक ना कोई सहारा था।
मौज मस्ती खेल कूद
जिंदगी का यही फसाना था।
दिन आये जब स्कूल जाने के तो
रोज का यही बहाना था
पेट मे दर्द आज सिर में दर्द है
इरादा बस खेलने जाना था।
पढ़ लिख कर जब बड़े हुए तो
होता ये रोजाना था।
हाथो में टिफिन और फ़ाइल लिए
ऑफिस के लिए मुझे जाना था।
नौकरी लगी तो घरवालो का
मकसद ये समझाना था।
शादी कर ले बेटा अब तू
परिवार मेरा बसाना था।
शादी हुई तो पत्नी के लिए
बस घर जल्दी से आना था।
राह देखते है घर बच्चे
तोहफा उनके लिए कुछ लाना था।
बड़े हुए जब बच्चे घर तो
कैरियर उनका बनाना था।
पढ़ा लिखा कर अच्छे से
स्वाभिमानी उन्हें बनाना था।
धीरे धीरे जब उम्र बीती तो
बुढ़ापा मेरा आना था ।
बच्चो की जब जरूरत मुझे थी
उसी वक्त उन्हें दूर जाना था।
पाल-पोसकर किया जिन्हें बड़ा
जो मेरी आँखों का तारा था।
बेटा वो मेरा जो बुढ़ापे का सहारा था
उसे आज पैसा ज्यादा प्यार था।
थमाकर लाठी हाथो में बोला
बाबा अब यही आपका सहारा है।
छोड़कर मुझे वृद्धाश्रम में कहा
बाबा बस यही आपका ठिकाना है।
बुलाया जब उसे मिलने को तो
वक्त नहीं है उसका बस यही बहाना था।
दरअसल मे तो उसको जिम्सेमेदारी से
पीछा अपना छुड़ाना था।
ए जिंदगी क्या दिन दिखाए
दुनिया मे अकेले आना था।
जीवन भर साथ रहा जो छोड़ गया अब
क्योंकि दुनिया से अकेले जो जाना था।।