दवा दारू.......
दवा दारू.......
एक हाथ मे है दवा एक मे दारू
बिना इसके कैसे जीवन गुजारूं
रोज का मेरा अधा पौना बन गया
पीते पीते जिंदगी का खिलौना बन गया
जब नशे मे चूर हो जाता हूँ
फिर दवा की ओर जाता हूँ
अब नही पीऊँगा हर सुबह
यही कसम खाता हूँ लेकिन
शाम होते होते मयखाने मे नजर आता हूँ
पिने पिलाने का तो बाहना है
झूठा ही सही मै खुश हूँ ये कह
नशे मे खुद को बहलाना है
पर कब तक समझ नही आता
अब दवा दारू के साथ जिया नही जाता
जब इक शराबी को गुनगुनाते सुना कि
मै शराबी हूँ इक दिन दुनिया छोड़ निकल जाऊंगा
अपने पिछे परिवार को तिल तिल जलने को छोड़ जाऊंगा
यह सुन बोतल हाथ से छूट गई
पिक्चर आँखों के सामने घूम गई
मन मे दृढ निश्चय है मैने ठाना
बिना दवा दारू के जीवन है बिताना
परिवार के साथ होता है जीवन मस्ताना
नही मुझे उनको जलते हुए छोड़ कर जाना
बंद कर दिया मैने पिना और पिलाना.............
