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Manju Rani

Others

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Manju Rani

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दर्द

दर्द

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 दर्द अश्क बन ज़मीन पर गिरे

 तो ज़मी भी रो पड़ी पर

 तुम पर कुछ फर्क न पड़़ा, तुम

 चिकने-घड़े से वहाँ से चले गए

 और

 आँसू अपनी कहानी कहते रहे,

 दर्द को हवा देते रहे ,

 दर्द नासूर बनते रहे ।

 दुनिया ने यह सफर न देखा

 इसलिए

 वे कुछ ना कुछ कहते रहे ,

 जख्म पर नमक छिड़क रहे और

 जख्म कहराते रहे । 

 तुम  उसके केेशों मेें उलझे रहे।

 फिर जख्म बगावत पर उतर आए

 और खुली हवा में घूमने लगे,

 तन्हाइयों के संग रहने लगे 

 और 

 खुद-पे-खुद सूख गए ,

 आँसू भी थक कर बैठ गए ।

 देह अब धूप में पक गई,

 इस बेदर्द

 दुनिया में जीना सीख गई।

 जब भी धड़कन धीमी पड़ती

 अपने जख्म कुरेद देती

 और

 धड़कन अपनी रफ़्तार पकड़ लेेेती ।

 दर्द प्रेरणा बन कर्म में

 समाहित हो गए और

 धरती पर नए फूल खिल गए।


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