दर्द की गवाही
दर्द की गवाही
सफ़र-ए-ज़िंदगी के भंवर में, आज मेरा दिल आ फसा,
दर्द की गवाही बयां करती, 'आंखें' कहे क्या हुई खता।
किस्मत की सैया पर लेट रहा, अपनी तकदीर मानकर,
जुल्म क्यों ढाये ज़िंदगी ने इतने, खुदा आज तू ही बता।
अश्कों से भीगी आंखें मेरी, दर्द-ए-दास्तां बयां कर रही,
लौट आ सनम 'शिकवे' सारे भूल, अब मुझे यूं ना सता।
हर पल तेरी उन यादों में, मेरे दिल में जलती आग को,
सनम शोला बन धधकती आग, बुझे कहां बता दे पता।
सीली-सीली शाम, संग तेरा, फ़लक में कौंधती बिजली
उन यादों को भूल, बता कैसे साबित करूं अकलंकता।।
