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Dhan Pati Singh Kushwaha

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Dhan Pati Singh Kushwaha

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दर्द खोने का

दर्द खोने का

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अगणित प्रभु ने दीं सौगातें , कुछ खो गईं पर अनेक हैं पास

जितने समय हेतु आवंटन था उनका,तब थीं रहीं वे मेरे पास

शिक्षा उनकी सदा रहेगी, हर पल रहेगा उनका मुझको अहसास

जीवन सरकता ज्यों रेत मुट्ठी से , पर अब तक न कर पाया कुछ खास

माॅ॑-नानी-नाना-जनक खो चुका, अग्रज-अनुज सखा भी कई खास

आती यादें व्यथित मन होता,क्षण न वे आ पाएंगे होऊं चाहे लाख उदास।


जो पटकथा प्रभु ने रच राखी, उसके निर्देशन में अभिनय करूंगा है यह विश्वास

दुनिया के इस रंगमंच पर प्रवेश नियत है,और सदा नियत है पात्रों का निकास

कुछ का मिलन देता असीम सुख, कुछ की विरह दे आजन्म सतत् टीस का अहसास

दर्द सभी के जाने का है पर, मातामह के गमन का अत्यधिक पीड़ादाई है अहसास

कोटिक दु:ख झेले मेरी खातिर,सुख जो मैं उनको दे पाता-होता सौभाग्य मेरा वह काश

अटल विधान विधि का है इस जग में, उचित करेंगे प्रभु है यह अटूट विश्वास।


क्षण भंगुर तो यह शरीर है , पर स्थाई हैं विचार और विश्वास

जीवन -मृत्यु प्रभु का प्रबन्ध है,विधि विधान है बड़ा ही खास

कभी दखल इसमें नहीं देना, प्रभु की इच्छा का रखें अहसास

जो सशरीर अब नहीं संग में,पर उसकी शिक्षाएं सदा ही पास

यह काया वरदान है प्रभु का,प्राण -प्रण से इसकी रक्षा का करें प्रयास

आशा दीप जलाकर रखना,दु:ख के झंझावातों से हों न कभी निराश।


जीवन मृत्यु विषय हैं प्रभु के,भले चाहे सब ही खो जाए-खोने न पाए विश्वास

खोई वस्तु मिले वहीं जहां खोई,खोई जगह न मिले -कभी भी खोया हुआ विश्वास

जीवन लग जाता विश्वास बनाए रखने में,पर एक क्षण में हो जाता है उसका नाश

किसी का विश्वास आजन्म रहे , अक्षुण्ण रहे विश्वास भले तन का हो जाए नाश

रहकर सजग भरोसा रक्खें, वह नौबत न आए कि हम पछताएं -ऐसा कर लेते काश

हुई से भूल से शिक्षा लेना,मत सिर धुनना ना पछताना-न चुप बैठना रखकर हाथ पर हाथ


कोई भी शरीर या जीवन निजी न समझे , यह प्रभु और जग की तेरे पास धरोहर सारी है

सीखे ज्ञान को आगे बढ़ाना और अगली पीढ़ी को पहुॅ॑चाना,हर एक मानव की जिम्मेदारी है

कड़ी है तू प्रभु रचित श्रृंखला की, स्नेहक स्नेह सदा है इसका और स्वार्थ बुरी बीमारी है

अर्जन-त्याग के नियत समय हैं ,जो है कर्त्तव्य एक का जग में दूजा उसका अधिकारी है

कर्त्तव्य निभाए बिन अधिकार का इच्छुक , फिर तो समझिए उसकी गई मति मारी है

सब इच्छित नहीं - सदा शुभ होता जग में, प्रभु की इस जग में पटकथा कल्याणकारी है।



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