दर्द भला कैसे रिसता
दर्द भला कैसे रिसता
रिश्तों का है ताना बाना,
कुछ जाना कुछ अनजाना
कुछ जाने बन जाते अनजाने,
कुछ पराये भी होते हैं अपने।
कुछ जाना...
रिश्तों के रंग होते हैं निराले,
कुछ उजले, कुछ काले
दुख में परखे जाते रिश्ते,
सुख में पल्लवित होते रिश्ते।
क्या इसे है सबने पहचाना।
कुछ जाना...
परीक्षा की कसौटी पर
कसते रिश्ते,
दुख का कारण बनते रिश्ते।
आहा से आह तक बनते रिश्ते,
बिखर बिखर कर जुड़ते रिश्ते।
कठिन है इनका सहेजना।
कुछ जाना...
ना हो यदि किसी से रिश्ता,
दर्द भला कैसे रिसता
दर्द की साझेदारी,
घुटन से उबारता रिश्ता।
कुछ मन से कुछ बेमन से,
पड़ता है रिश्तों को निभाना।
कुछ जाना कुछ पहचाना,
रिश्तों का है ताना बाना।
