दोहों में छलके रंग
दोहों में छलके रंग
धरती अंबर हो गए, देखो ! लालमलाल
मदहोशी के रंग ने, कैसा किया कमाल
खिली फाग में आज है, लाल - गुलाबी भोर
नेह गुलाल लगा गया, नजर छिपा चितचोर
देने सुगंध का पता, चली बसंत बयार
पता प्रेम को दे गयी, महक अजब उपहार
गुजिया, कांजी की सखी ! छायी अजब बहार
माँ का इनमें है घुला, ममत्व, मिठास, प्यार
अमराई में झूमते, मधुर कोकिला बोल
राग सुनाए फाग के, पुरवाई के ढोल
होली रंगों से सजी, भर पिचकारी धार
हर्षल रंगों में घुला, जनमानस का प्यार
कोरे - कोरे कलश में, घोल पिया ! सब रंग
भर पिचकारी खेलते, इक - दूजे के संग
हिरदय की दहलीज पर, रखकर रंग गुलाल
पुलकन भर दी अंग में, ख़ुशियाँ मालामाल ।
