दिल ये कहता है
दिल ये कहता है


दिल ये कहता है कुछ लिखूँ लेकिन क्या
अब तो अल्फाज़ों में वो ताज़गी कहां,
ज़िदगी में, अधूरा सा सच सब कुछ
और ये अधूरी सी जान
दिल ये कहता है कुछ लिखूँ लेकिन क्या
वफ़ा करके भी क्या पाया हमने,
पूछती है मुझसे मेरी वफ़ा
दिल ये कहता है कुछ लिखूँ लेकिन क्या
वो चाँद है या था मालूम नहीं मुझ को
दूर से तो वो हमें चमकता दिखता
रहा सदा
दिल ये कहता है कुछ लिखूँ लेकिन क्या
धागों के शहर में खुद को उलझा दिया हमने,
चाह कर भी निकलना सके हम सदा।
दिल ये कहता है कुछ लिखूँ लेकिन क्या
हमने अश्कों को अपना साथी समझ लिया
जब से किया है ख़ुशियों ने हमसे दगा
दिल ये कहता है कुछ लिखूँ लेकिन क्या
लेकिन क्या।।