दिल की प्यास
दिल की प्यास
दिल की बुझ रही न कभी प्यास,
बनकर रह गई है उनकी सिर्फ एहसास!
सोचा था उन्हें पाकर समंदर पा लिया है मैंने
मगर झांककर देखा तो सुखी तालाब भी नहीं था मेरे पास ,
न कोई पानी की बूंद थी आसपास जिससे
मेरे सूखे कंठों की बुझ सके प्यास !
कड़ाके की ठंड में ठिठुर रहा था मैं ,
यूं तो मुझे ठंड से राहत दिलाने के लिए जल रही थी
अग्नि कुंड में आठों पहर अस्थियां,
मगर फिर भी उष्णता कभी पहुंच पा न रही थी मेरे पास
नेपथ्य में बैठे सोचता हूं
कभी शायद मेरे मर्ज की मरहम बनी ही नहीं कोई आज
ये मेरी बीमारी ही हो कोई खास जिसका उपलब्ध न हो
अब तक कोई इलाज।