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सीमा शर्मा पाठक सृजिता

Others

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सीमा शर्मा पाठक सृजिता

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दिल का एक टुकडा़

दिल का एक टुकडा़

1 min
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छोड़ आई थी अपने 

दिल का एक टुकडा़

उसी दहलीज पर

जिसके भीतर जीये थे 

अनगिनत खूबसूरत लम्हे 

जो आज भी मेरे मन मस्तिष्क के

 पटल पर हैं बसे 

नये घर में आकर 

नई दहलीज पार की थी 

नये जीवन का नया सफर और

जिम्मेदारियाँ स्वीकार की थी 

रच बस गये थे इस दहलीज के 

निशां मेरे मन में 

नये घर की दहलीज के

 मान सम्मान से बढ़कर

 कुछ भी नहीं था जीवन में 

लेकिन बहुत याद आता था 

वो टुकडा़ दिल का 

जिसे छोड़ आई थी मैं 

मायके की उस दहलीज पर 

बहुत बार मिली और सम्पूर्ण हुई 

हंसी मुस्काई, खूब गुनगुनाई 

लेकिन जब भी वापस आई 

वो टुकडा़ वहीं छोड़ आई |



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