दीपावली के दीप
दीपावली के दीप
दीप ऐसे जलाएं दिवाली में हम,
खुशियों से यह धरा जगमगाने लगे
कोई कोने व अंतरे न बाकी रहें,
प्यार आँखों से ही छलछलाने लगे।
चाँदनी की ज़रूरत निशा को न हो,
और धरा स्वर्ग के आशियाने से हो
कूचे गलियों में भी ऐसी रौनक दिखे,
गीत खुशियों के सब गुनगुनाने लगें।
हर रकम के सुमन सम दीये की चमक,
देख तारों का दल फुसफुसाने लगे
देखिये वह धरा पर कोई अपना-सा,
ऐसा कह-कह के वो मुस्कराने लगें।
चहुँ दिशाओं में ऐसे पटाखे फुटें,
बादलों को जिन्हें देख अचरज लगे
ये धरा पर भला किस तरह का जशन,
कोई हमको नहीं तो बुलाने लगे।
रोशनी में नहायें सभी के भवन,
और परिधान धारण किये हो नए
ये अगर-धुप की खुशबू के साथ में,
सब निशा की गमक को बढ़ाने लगें।
रातरानी व चम्पा चमेली सभी,
अपने अपने महक से सुशोभित करें
आज दीपावली के स्वागत में मिल,
प्रेम सबके दिलों में जगाने लगें।
