धरती के टुकड़े पर
धरती के टुकड़े पर
मिल जाता मुझको
यदि छोटा सा धरती का टुकड़ा
माली काका से लेकर
दूब रोपता नर्म और हरी हरी,
छोटे छोटे गमलों में
मिट्टी भरता, बीज डालता
फूल खिलाता ;
रोज़ सबेरे पानी देता
कहता, सूरज दादा कुछ गर्मी दे दो
चंदा मामा तुम कुछ नर्मी दे दो।
कुछ पेड़ रोपता
बढ़ते जो छाया देते,
छोटा सा धरती का टुकड़ा
बन जाता बाग़ बड़ा ;
पेड़ों के संग मैं भी बढ़ता
बूढ़ा होता
किसी पेड़ की छाया में बैठा
देखा करता
बढ़ते पेड़ों को, पौधों को, बच्चों को, बूढ़ों को
खेला करता कोई,
सोया रहता कोई
सोचा करता हर दिन
कोई तो होगा इनमें
धरती के इक छोटे से टुकड़े पर जो
दूब उगाएगा,
पेड लगाएगा,
नए सिरे
फ़िर कोई बाग़ बनाएगा :
पेड़ों के साए में
फ़िर कोई खेलेगा, फ़िर कोई सोएगा।