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Dr J P Baghel

Others

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धन (कुंडलियां)

धन (कुंडलियां)

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धन की इस संसार में, रही सभी को चाह

जितना आया पास में, उतना ही उत्साह।

उतना ही उत्साह, भूख उतनी ही भारी 

रहा लगाता दौड़, जिंदगी थकी बिचारी।

कह 'बघेल' कविराय, न देखी राह पतन की

मिला न मन को चैन, बढ़ी जब तृष्णा धन की।।१

 

धन के पर्वत पर खड़े, पाई एक न पास 

भोग रहे ऐश्र्वर्य सब, बना बना कर न्यास।

बना बना कर न्यास, संत, नेता, व्यापारी 

आमदनी कर-मुक्त, गुप्त हर चोर बाजारी।

कहो 'बघेल' कविराय, नयन तारे जन-जन के

जिनके भगवा, शुभ्र, वेश, चाकर वे धन के।।२


धन की हो जिन पर कृपा, वही पुरुष हैं धन्य 

लक्ष्मी-सा मिलता उन्हें, अतुल रूप-लावण्य ।

अतुल रूप-लावण्य, जगत को मोहित करता

बुद्धि, ज्ञान, कौशल्य, उन्हीं के पास ठहरता ।

कह 'बघेल' कविराय, तृप्तियां तन की, मन की

हुई उन्हीं की पूर्ण, कृपा थी जिन पर धन की।।३


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