धीरे-धीरे आ रहा है ऋतुराज
धीरे-धीरे आ रहा है ऋतुराज
धीरे-धीरे आ रहा है ऋतुराज बसंत
हो रहा है उर से निराशा का अंत।
मनमोहक दृश्य है चहुँओर छाया
पृथ्वी पर पुष्पों ने इंद्रधनुष बनाया
झंकृत किए हैं ऋतु ने हृदय के तार
किया है प्रकृति ने अद्वितीय श्रृंगार
मधुर कलरव से संगीत हुआ मुखर
जन-जन रोमांचित हो उठा भूमि पर
चाहे साधारण मनुज हो या हो संत।
धीरे-धीरे आ रहा है ऋतुराज बसंत।
कर्म पथ पर रहो सदा अग्रसर
बसंत ऋतु का यही संदेश अमर
होने न पाए प्रयासों में कमी
दृगों में न आये नैराश्य की नमी
बसंत ऋतु का गीत यही है
इस जीवन की रीत यही है
जीवन में सदा संभावनाएं हैं अनंत
धीरे-धीरे आ रहा है ऋतुराज बसंत।
