डर से डर लगता है
डर से डर लगता है
मै बचपन से ही डरती थी,
सांप, छिपकली, काकरोच से
पर मेरी चार बरस की नातन उन्हें एेसे पकड़ लेती है
जैसे कि बाग में उड़ती कोई तितली हो
कई बार समझाया डांटा पर सब बेकार
कभी कभी तो मुझे लगता है कि वह डर पर रिसर्च करना चाहती है
बताना चाहती है डर नाम की कोई चीज़ नहीं होती
पर मै क्या करुं मुझे तो डर एक बहरूपिया लगता है
जो किसी न किसी रूप में अा जाता है डराने
कभी किसी रंग से, कभी किसी ढंग से, कभी बीमारी से
कभी बेरोजगारी से तो कभी दंगों से
और यकीन जानिए इसने जब जब भी मन के दरवाज़े पर दस्तक दी है
कुछ न कुछ बड़ा घटित हुआ है
आजकल मै ज़्यादा चिंतित हो गई हूॅं
क्योंकि मुझे डर लग रहा है
अपनी बेटी की बढ़ती उम्र, खुबसूरती, रंग और मासूमियत से
मेरा अंतस कांप जाता है और मै तब तक सुकून नहीं पाती
जब तक कि वो घर न अा जाए
मै हलकी सी आवाज़ से भी चौक जाती हूं
मेरा बी.पी. बढ़ जाता है
पसीना बदन कि सारी नसों को चीरता उबल पड़ता है
और मुझे डर से भी डर लगने लगता है।
