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Shakuntla Agarwal

Others

5.0  

Shakuntla Agarwal

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||"डोली"||

||"डोली"||

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डोली अरमानों की सजती है जब मायके में,

क़सक दिल के कोने में कुहुक उठती है,

कोयल बन चहकी जहाँ, 

चमेली बन महकी जहाँ,

हिरणी बन फुदकी जहाँ, 

बाबुल की बाँहों के झूले में झूली जहाँ,

चिड़िया बन उड़ जाऊँगी,

गाय की तरह किसी खूटे से बँध जाऊँगी,

आले में गुड़िया, आँगन में बीर को छोड़ जाऊँगी।


सहेलियोँ संग पींगे बढ़ाई जहाँ,

उन्हें याद कर नीर भर लाऊँगी,

ये माना वो सफ़र सुहाना होगा,

यहाँ भी तो बीता ज़माना होगा,

माँ - बाप का दुलार, 

बुआ - फूफ़ा का प्यार पाने को,

क्या वहाँ तरस जाऊँगी ?


सास - ससुर में माँ - बाप को खोजूँगी,

क्या उनके प्यार को समझ पाऊँगी ?

देवर बन जाएगा भईया,

क्या उनका फर्ज़ निभा पाऊँगी ?

हसरतें भी है मन में, खटक भी है,

क्या मैं दोनों कुल की उम्मीदों पर खरी उतर पाऊँगी ?


दोनों कुल की शान होती हैं बेटियाँ,

दोनों कुल की आन होती हैं बेटियाँ,    

चाहें तो नरक बना दे, चाहें तो स्वर्ग,

काली और लक्ष्मी का रूप होती हैं बेटियाँ,

महावर के पैरों से डंग भरती हैं जब,

घर को पवित्र करती हैं बेटियाँ,

पायल की झंकार ले, जब आँगन में डोलती हैं,

होले से मन के किवाड़ खोलती हैं बेटियाँ,

बेटी और बहू में कोई फ़र्क नहीं,

फ़िर क्यों अपने आप को बहू बना लेती हैं बेटियाँ,

एक - एक पल गिनने पर,

घर में आती हैं लक्ष्मी रूपी बेटियाँ,

लक्ष्मी रूपी बेटियों की "शकुन",

कद्र करना सीखो, वरना वंश की तो छोड़ो,

आँगन में भी नज़र नहीं आएँगी बेटियाँ !!


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