चुभन
चुभन
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कभी मैं तो कभी तुम से निकल
ऐ खुदा तू भी संभल,
उजालों ने अंधेरों को
लगाया है गले अब तो
ऐ जुगनुओं,
तू जरा थम थम के चमक
ये बातें है, तो वो बातें हैं
इन बातों के लफड़े में
समझ कर उलझ,
वो दरिया सूख गया,
देकर बादलों को अपना पानी
ऐ आँखें तू जरा खुल कर बरस
देखता रहता है
वो अच्छे दिनों के आने का ख्वाब,
ऐ किस्मत की लकीरें
तू भी तो आदमी सा बदल,
रहता है तो अब ये दिल भी गुमशुद
ऐ धड़कने तू भीरुक रुक कर धड़क
इन हवाओं के रुख से उलट
चलता है मन मेरा
हैं रुकावटें ,कांटे तमाम
ऐ हमदम इन राहों पर जरा संभल!
