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Alok Singh

Others

3  

Alok Singh

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चुभन

चुभन

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कभी मैं तो कभी तुम से निकल 

ऐ खुदा तू भी संभल,


उजालों ने अंधेरों को 

लगाया है गले अब तो 

ऐ जुगनुओं,

तू जरा थम थम के चमक 


ये बातें है, तो वो बातें हैं 

इन बातों के लफड़े में 

समझ कर उलझ,


वो दरिया सूख गया,

देकर बादलों को अपना पानी 

ऐ आँखें तू जरा खुल कर बरस


देखता रहता है

वो अच्छे दिनों के आने का ख्वाब, 

ऐ किस्मत की लकीरें 

तू भी तो आदमी सा बदल,


रहता है तो अब ये दिल भी गुमशुद 

ऐ धड़कने तू भीरुक रुक कर धड़क 


इन हवाओं के रुख से उलट 

चलता है मन मेरा 

हैं रुकावटें ,कांटे तमाम 

ऐ हमदम इन राहों पर जरा संभल!


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