चिराग
चिराग
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पुरानी पड़ी अलमारी
करने लगा मैं जो साफ़
जूते टोपी झाड़ू मिले
और मिला एक चिराग
धूल से था वह नहाया
फूंक से कुछ उड़ाया
कुछ हाथ रगड़ कर
भी धूल भगाया
हाथ रगड़ने से हुई जो हलचल
निकला धुआं जैसे कोई अड़चन
दो कदम जो पीछे भागा
सामने जीनी बड़ी मेरी धड़कन
हंसते हंसते वह बोली
सारे राज तब वह खोली
मुझे तुमने जगाया क्यों
अपने को दास बनाया क्यों
मैं अब ना अंदर जाऊंगी
रोज दही जलेबी खाऊँगी
अगर तू ना लाया तो
मैं इंसान बन जोर से चिल्लाऊंगी
मैं परेशां हैरान इतना
कैसा उल्टा चिराग मैंने पाया
कहीं मिलते हीरे मोती
यहाँ जिनी के पैर दबाया।