छल
छल
कौवा बोला मोर से
करो मुझ पर उपकार,
शादी है आज मेरी
दे दो पैर उधार।
मोर ने सोचा दोस्त है
कैसे करूं इनकार,
द्वार खड़ा लेने के लिए
कर ली विनती स्वीकार।
लेकर पैर कौवा प्रसन्न
था शादी को तैयार,
अपने पैर दे मोर को
इतराए बारंबार।
देख सुंदरता पैरों की
मन में उठा एक सवाल,
हर तरफ बातें पैरों की
गूंज उठा पंडाल
वापिस आया घर अपने तो
मोर भी पहुंचा पास,
आई जान में जान उसकी
जगी पैर मिलने की आस।
बोला तुम्हारा काम हो गया
पैर मेरे लौटा दो,
मेरी वजह से काम बना
मुझको भी तोहफा दो।
लालच जगा मन में कौवे के
देने से किया इनकार,
तोहफा देना दूर रहा
निकाला घर से बाहर।
आज भी प्रसन्न होकर मोर
जब अपना नृत्य दिखाता है,
देखकर अपने पैरों को,
मन आंसू नित बहाता है।
वह आंसू नित बहाता है।।
