छिछोरे
छिछोरे
मेरे कुछ दोस्त जिन्हे पिछले कुछ
दिनों में छिछोरे देखने को मिली है,
उन सब ने उस ढाई घंटे में
अपनी पूरी हॉस्टल लाइफ जी ली है।
वो फिल्में हमने भी बहुत देखीं,
प्लेबॉय पढ़ते थे, मस्तराम के फैन थे,
हम सब भी कभी न कभी,
सेक्सा की तरह ही बेचैन थे।
सूट्टे वाले डेरेक भाई जैसे
दोस्त हमारे भी बहुत थे,
सिगरेट न होने पर जब तलब लगती थी,
तब उनके सहारे भी बहुत थे।
दिन भर टुन्न रहने वाले बेवड़े भी थे
बस थोड़े से थे ज्यादे नहीं थे,
हाँ चैस वाले राजा, रानी
घोड़ा और प्यादे नहीं थे।
एसिड तो सब में था
किसी में थोड़ा, किसी में ज्यादा,
मां बहन करना उनकी फितरत में था
उनसे लड़ने से नहीं था कोई फ़ायदा।
अन्नी (कम्मो) जैसा तो
हर कोई बनना चाहता था
हर रोज़ गर्ल्स हॉस्टल जाकर,
किसी पे मरना चाहता था।
मम्मी जैसे दोस्त थे जो
बोलते कम थे, पढ़ते ज्यादा थे,
वादे कम करते थे पर,
निभाते अपना वादा थे।
ये सब दोस्त अब काफी बड़े
हो चुके हैं और मस्त हैं,
अब तो बस बच्चों की बारी है,
हम सब तो बस अपने कामों में व्यस्त है।
मेरी कुछ दोस्त जो गर्ल्स हॉस्टल
की पुराणी साथी हैं,
उनकी भी कुछ स्मृति होंगी,
जो उन्हें आज भी याद आती हैं।
