छाया बसंत
छाया बसंत
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बसंत की छाई, मादकता चारों ओर
बही भीनी सुवासित सुगंध, वन में नाचे मोर
प्रकृति की हरीतिमा ने, खूब धूम मचाई
पुष्पों से खिली बगिया, खूब भली सुहाई
पीली चुनर ओढ़े, सरसों के खेत लहलहाते
लाल-गुलाबी फूलों पर, भँवरे है इठलाते
कोकिला के मधु स्वर, मादक किये जाते
पपीहे की पीहू, कानो को है भाते
नई उमंग, स्फूर्ति का, संचार करें यह बसंत
देखो कैसे झूम के, आया मौसम वसंत
देखकर बसंत का ऐसा अनुपम रूप, मतवाले हुए हम
झूमे, नाचे, मौज मनाएँ और गीत गुनगुनाएँ हम।
