बसंती हवा
बसंती हवा
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बसंती हवा चली
सबके मन लगी ।
गाँव-गाँव और गली
तेजी से ये बही।
ले चली ये सबको संग
पुष्पो की बही सुगंध ।
मधुकर के गूँजते है राग
देखो चली ये कैसी बयार।
बसंती हवा के बहुरंगी रंग
अपने में हो रही मग्न।
यहाँ चली वहाँ चली
सबको लगी ये भली।
रूके नहीं इसके कदम
अपने में रखे संयम।
मुश्किलों में भी पीछे न हटे
खडी़ रहे ये डटे।
देखो कैसी ये बसंती हवा
झूम-झूम चली कहाँ।
