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ca. Ratan Kumar Agarwala

Others

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ca. Ratan Kumar Agarwala

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चाय की चुस्की

चाय की चुस्की

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चाय की चुस्कियां काली जरूर होती है,

पर बात काले और सफेद के फर्क की नहीं जनाब,

चाय की चुस्कियां होती बड़ी ही मस्त अलमस्त है।

चाय में जो मस्ती, वह दूध में कहाँ जनाब?

 

हम चाय का स्वाद ही नहीं लेते,

इसकी भाप में भुला से देते कई गम।

दोस्तों के साथ चाय पर करते गुफ्तगू,

तो खुशनुमा लगता सारा ये चमन।

 

कभी जब होता हूँ अकेला मैं,

खुद से खुद ही करता हूँ बातें।

बनाता खुद से एक प्याली चाय,

बस चाय की चुस्कियां और खुद से मुलाकातें।

 

लगते सुहाने वे अकेलेपन के पल,

जब आंशनाई होती अपनेआप से।

न होता आस पास कही भी कोई,

बस चाय के संग पल बीतते जाते।

 

सुख हो या फिर हो कोई भी दुःख,

नहीं छोड़ती कभी चाय हमारा संग।

होली हो, दीवाली हो या कोई और पर्व,

चाय में घुल जाते खुशियों के रंग।

 

समोसा खाएं, कचौरी खाएं,

चाय की चुस्कियां से बनता स्वाद।

चाय की चुस्कियां संग न रहे,

तो सब मानो लगते बड़े ही बेस्वाद।

 

प्रेमी जब याद करता प्रेयसी के नगमे,

चाय की चुस्कियां लगाती चार चाँद।

नगमों के छंद हो जाते सुरीले,

मिलता प्रेमिका के संग सा आनंद।

 

याद करता हूं कभी भाई बहन का साथ,

लेते थे सब जब चाय की चुस्कियां।

चाय में डूबो कर खाते थे रोटियाँ,

उसी में मिल जाती थी ढेरों खुशियाँ।

 

अब भी लेता हूँ चाय की चुस्कियां,

पर न रही वह बचपन की मस्तियाँ,

प्लेट में डाल चाय पीने की कहाँ गई वो हरकतें,

अब कहाँ गई वो मटरगस्तियां?

 

फिर भी लेता आज भी मैं चाय की चुस्कियां,

याद करता आज भी बचपन की वो शैतानियाँ।

बदल से गए कुछ जिन्दगी के मायने,

पर साथ रह गई चाय की वह चुस्कियां।


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