चाँद
चाँद

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न मालूम कैसे और क्या देख लिया करती हैं आँखें,
तुमको चाँद और चाँद को तुममे देख लिया करती हैं आँखें,
दरमियान दर ओ दीवार हो या समन्दर हो लहरों का कोई,
जब देखने पे आयें तो आईने के पार देख लिया करती हैं आँखें,
दूर तलक जितना भी कहीं दिखाई देता नहीं मेरा सनम,
आँखों में चेहरा उतना ही गहरा देख लिया करती हैं आँखें,
बेअसर दुनिया का हर एक ज़हर हो जाया करता है अक्सर,
जब इश्क ऐ बुखार का खुद पर ही असर देख लिया करती हैं आँखे।।