चाँद – धरा !
चाँद – धरा !
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अगर बता देतीं पहले – से
बिखेरोगी तुम श्वेत प्रकाश ,
तब ये बेचारा चंदा
ले लेता इक अवकाश !
अब दोनों जब आ ही गऐ
तो क्यूँ न ऐसा कर लें
आ जाऊँ मैं पास तुम्हारे
युगल- रात ही कर लें !
वैसे भी अब मानसून में
बादल छाने लगते हैं ,
रिमझिम रिमझिम नन्हीं बूँदें
ये बरसाने लगते हैं !
मैं आ गया हूँ पास तुम्हारे
लोग जान न पाऐंगे ,
सोचेंगे बादल ने घेरा
घर में जा सो जाऐंगे !
बस तुम रुकना कुछ पल को
मैं घर जाकर आता हूँ ,
माँ को ख़बर किये देता हूँ
छाता भी ले आता हूँ !!