बुलंद
बुलंद
अपने को कर इतना बुलंद
कि कोई भी हवा का झोंका
तेरी मुस्कुराहट छीन न सके।
तुझे तेरे से दूर कर न सके,
तेरी खुशबू इन फिजाओं में
महक सके।
अपने को कर इतना बुलंद
कि राह भी फूल बिछाये
राह देखती जाये।
आसमान खुद पे खुद झुक जाये,
और मंजिले कदमों में बिछ जाये,
हर उँँचाई छोटी होती चली जाये।
अपने को कर इतना बुलंद
कि देख तुझे हर दिल
आदर और सम्मान से भर जाये,
हर हाथ दुआओं के लिए उठ जाये,
और तू आत्म-सम्मान के साथ
बस आगे ही बढती जाये।
अपने को कर इतना बुलंद
कि खुदा भी तुझ पे नाज़ कर जाये।