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संजय असवाल "नूतन"

Others

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संजय असवाल "नूतन"

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#बुद्ध तुम लौट आओ#

#बुद्ध तुम लौट आओ#

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जब मानव,

बेबस और लाचार हो जाए,

और समर्पण कर रहा हो,

खुद को,

अपने ही हालातों से,

हिंसा और दुखों के आगे।

जब मृत्यु का भय उसे,

पल पल सता रहा हो,

और अत्याचार की हर सीमा से

स्त्री,बच्चे,वृद्ध और मजलूम त्रस्त हो रहे हों,

मानवता खुद ही शर्मसार हो रही हो,

अपने ही कुकृत्यों पर।

जब घृणा का भाव एक दूसरे के प्रति,

इस कदर बढ़ जाए

कि मानव को मुखोंटों में ही,

अपने अस्तित्व को जीना पड़े,

सत्य से परे असत्य के परिवेश में।

जब कांप रही हो धरती अनंत पाखंडों से,

और निराशा हताशा में बैठें हो मनुष्य हर ओर,

तब अनायास ही बुद्ध हमें याद आते हैं,

याद आती है, हमें उनकी हर एक सीख,

उनकी मित्रता,अहिंसा,करुणा का उपदेश,

याद आता है, हमें उनका सन्यास

जब मन में मोह हो अपनों का,

मोह हो भौतिकता का,

याद आता है उनका बताया एक मार्ग,

"निर्वाण"

जिससे सांसारिक दुखों से मुक्ति मिल जाती है।

याद आते हैं बुद्ध तब हमें,

जब हर ओर अंधकार का जाल बिछा हो,

बुद्ध तुम कहां चले गए हो,

आज फिर जरूरत है तुम्हारी,

इस मानव जाति को,

जो मोह पाश में बंध कर

खुद ही नष्ट कर रही है खुद को,

जो थक कर रुक गई,

परिस्थितियों से घबरा कर,

अब कोई विकल्प नहीं सिवाए तुम्हारे,

बुद्ध,

तुम जहां भी हो लौट आओ।


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