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Himanshu Sharma

Children Stories Tragedy

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Himanshu Sharma

Children Stories Tragedy

बस्ता

बस्ता

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टांग बचपन चल रहा हर रोज़ ये बस्ता,

बन रहा है कांधे पर अब बोझ ये बस्ता!

हाँफता चल रहा बचपन लेकर किताबें,

रखे नहीं बचपन से दिल-सोज़ ये बस्ता!

डिब्बा खाने का और लिखने का बक्सा,

अब न रहा यूँ देखिये कमरोज़ ये बस्ता!

थककर आते और गिर जाते बिस्तर पर,

देखता, थकता बचपन हर रोज़ ये बस्ता!



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