*बसन्त*
*बसन्त*
इस बसंत के मौसम में
सृष्टि पर यौवन छाया है।
गुल और गुलशन गुलजार हुए,
जन-जन का मन हर्षाया है।
कोयल ने मधुर तान छेड़ी,
अलि कलियों पर मँडराया है।
गुड़हल, पलाश के फूलों ने,
अपना जादू बिखराया है।
अल सुबह आज सूरज का भी,
जी भरकर साक्षात्कार किया।
हरसिंगार के फूलों ने,
झड़कर रवि का सत्कार किया।
बागों में चिड़िया चहक रहीं,
दाना चुगती हैं फुदक- फुदक।
अलमस्त कबूतर गुँटर -गुँटर,
खाते हैं बाजरा चुग- चुगकर।
गिलहरियाँ भी घूम-घूम कर
दाना चुगती जाती हैं।
दाना चुगते- चुगते,
वे इक दूजे को खूब चिढ़ाती हैं।
एक आकर बोली ढूँढ मुझे,
डाली के ऊपर झूल गई।
ये आँख-मिचौली अठखेली,
भीतर तक मुझे हिलोर गई।
मौसम पे जवानी छाई है,
बागों में बहारें आईं हैं।
मदनोत्सव मिलकर मना रहे,
हर कली-कली मुस्काई है।