बसंत
बसंत
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मेड़-मेड़ खेत-खेत गाँव-गाँव में समीर
मंद-मंद डोलती विहंस हंस दंग है।
डाल-डाल पात-पात पुष्प चूमते अलिंद
नेह-मेह नीति-रीति भा रही उमंग है।
झूम-झूम प्रात गान गा रहा बसंतदूत
पंख खोल मोर मग्न नाचता अनंग है।
कुंज कुंज है प्रसन्न देख भूमि स्वर्ण पर्ण
आम्र वृक्ष बौर कोकिला कुहू मृदंग है।
