" बस चुभती है मंहगाई "
" बस चुभती है मंहगाई "
न बदली वो रौनक न बदला है रूप,
न बदली है छाया न बदली है धूप।।
शान से खड़ा क़ुतुब का मीनार है,
लाल किला का अपना इतिहास है।
राजपथ संसद की गरिमा आपार है,
विश्व की निगाहें टिकती सौ बार है।।
न बदली वो रौनक न बदला है रूप,
न बदली है छाया न बदली है धूप।।
मेट्रो की सेवा हर्षित हमें करती है,
दूर तक लोगों को क्षण में ले जाती है।
शिक्षा, शीलता का गढ़ यहाँ बन गया,
लोग सारे मिल गए प्रेम का यह घर बना।
हमने कुछ प्रयोग करने को ठानी,
किसी एक की न चलेगी मनमानी।
न बदली वो रौनक न बदला है रूप,
न बदली है छाया न बदली है धूप।
फिर देखते ही देखते मोदी को लाया,
नया प्रयोग कुछ हमसे करवाया।
हमें क्या पता था हमें भरमायेगा,
मंहगाई की मार हम पर बरसायेगा।
अच्छे दिन के लोभ में रख कर,
भ्रमित किया है सबने मिलकर।।
न बदली वो रौनक न बदला है रूप
न बदली है छाया न बदली है धूप।
