बरसात
बरसात
बारिश की ताल पर बूँदों की रुनझुन
बजती है जब घुँघरू की तरह,
बेख़बर “सोये अरमान “ मचल उठते है
अक्स लिये फिरती है मोहब्बत का,
संगीत की लय पर थिरकती बूँदे
तरसती निगाहों की कपँकपाती “लौ “
सुलग -सुलग सिहर सी जाती है।
दिये की मानिंद जल उठते है
ठिठोलियाँ करते, भीगे से लम्हात मेरे
तकरार करती है मुझसे जब ये दूरियाँ तेरी,
मनुहार करती, सोगवार करती है,
मनाती हूँ फिर ऐसे,
जैसे हवा से सरगोशियाँ, अठखेलियाँ करते,
ये बादल घनेरे,
अहसास की तपिश जैसे, सरसराहट पत्तों की,
चाहत थी इक ऐसी,
मुक्कमल हो गई हो कोई दुआ जैसे,
मुकम्मल हो गया है जहाँ ये मेरा,
रात से मिल जाये जैसे सवेरा।
फिर क्यूँ भीग सा जाता है मन का इक छोर
जब बरसता है सावन का पोर पोर
छनकती है बूदों की पायल,
सीले -सीले बहारों के मौसम की
शबनमी बूँदों हो जैसे
सुलग जाते है, सिमट से जाते है अरमान ऐसे,
ज्यूँ मचलती है बूँदे, हवाओ के आग़ोश में जैसे।
घुमड़ते है बादल गरजते भी तो है बादल,
कसक सी सीने में है, तभी तो तड़पते है बादल।
बारिश की ताल पर बूँदों की, रुनझुन के जैसे,
घुल कर महक जाऊँगी इक रोज तुझमे ऐसे।
सावन की बदरी में सिमटी है कोई घटा जैसे।
सीप में बन्द हो मोती जैसे ।
रोक ना पायेगा ये मिलन अपना कोई भी ज़माने में ,
जिस रोज फ़ना हो जायेगी मेरी चाहत की बूँदे,
इन बादलों के आग़ोश में।