बोलो कैसे खुशियां लिख दूँ
बोलो कैसे खुशियां लिख दूँ
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टूटे पत्थर व खंडहरों पर
बोलो कैसे खुशियाँ लिख दूँ ?
कहीं सिसकती आवाजें हैं
कहीं रक्त के कण छलके हैं।
हाथ फैलाये खड़े दूधमुँहे
पड़ी झोपड़ी में अबलाएँ।
वेदनाओं से भरी धरा है
खौफ का आतंक मचा है।
टूटे पत्थर व खंडहरों पर
बोलो कैसे खुशियाँ लिख दूँ ?
कोई बचपन को रौंद रहा है
अधखिले को तोड़ रहा है।
निराशा में डूबा हर मानव
अब तो बन रहा है दानव
धन की भूख प्यास भरी है
सन्नाटे का शोर बड़ा है।
टूटे पत्थर व खंडहरों पर
बोलो कैसे खुशियाँ लिख दूँ ?
