Gulab Jain
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दर्द का बोझा उठाए ज़िन्दगी को सहते हैं
हों भले महरूमियाँ, फिर भी खुश रहते हैं
मुक़ाबला मुश्...
आँखों से बयां...
हसीन लम्हें.....
भर-भर के जाम ...
धड़कनें थमीं ...
दीपक और तूफ़ा...
कितने मजबूर य...
प्रेम के फूल....
स्वप्निल-सी भ...
निबाह ख़ारों स...